कैसे अग्निहोत्र शुरू हुआ

सभी सदस्यों,

अग्निहोत्र क्या है कैसे करते है आप सभी जानते है पर क्या हमें मालूम है कि अग्निहोत्र यज्ञ जो आज समूचे विश्व के कोने कोने में हो रहा है उसकी शुरूआत कैसे हुई । अग्निहोत्र की शुरुआत 1963 में माधवाश्रम भोपाल से हुई और इसका जिम्मा अपने गुरु श्री गजानन महाराज जी की आज्ञा से माधवजी पोतदार साहब ने किया । बचपन से ही ईमानदार, परिश्रमी और सत्य का साथ देने वाले माधवजी 1954 में अपने गुरु से मिले और फिर न जाने क्या उनमें भाव परिवर्तन हुआ कि उन्होंने धीरे गुरु से हुई अनेको मुलाकातों में एक अलग ही निर्णय लिया और वह था गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण । जब माधवजी साहब अपने गुरु से मिले तो उन्हें यह नही पता था कि उन्हें विश्व के लोगों को दुख , त्रास से कष्टों के निवारण के लिए अग्निहोत्र का पुनरुज्जीवन करना है बल्कि उन्होंने केवल गुरु के प्रति समर्पण का भाव रखा जब गुरु को यह विश्वास हुआ कि उनके हज़ारों शिष्य भक्तो में से केवल एक ही शिष्य लायक है तो 11 अक्टोबर विजयादशमी 1959 को श्री साहब से श्री जी ने अपनी चरण पादुकाओं पर जल छोड़ते हुए यह प्रतिज्ञा करने को कहा कि " मैं श्रुति का पुनरुज्जीवन कार्य निष्ठा के साथ करूँगा" और यह भी कहा कि यह प्रतिज्ञा पूर्ण होते ही यह वज्रलेप सिद्ध होगी और ऐसा हुआ भी । प्रतिज्ञा करने के बाद वे अपने कार्य, यानी गुरु आज्ञा के पालन में जुट गए और 22 फरवरी 1963 को वह स्वर्णिम दिवस आ ही गया जिस क्षण की , उनके गुरु वर्षों से राह देख रहे थे, वह क्षण था विश्व का प्रथम अग्निहोत्र जो 1963 को विश्व के प्रथम अग्निहोत्री श्री हीरालाल शर्मा जी द्वारा शुरू किया गया । जब श्री साहब ने 1963 में अग्निहोत्र को दुनिया को सौंपा तब उनके गुरु यानी श्री जी के भक्त अग्निहोत्र से परिचित नही थे । अग्निहोत्र के पुनरुज्जीवन होने के 10 वर्षों बाद अग्निहोत्र का परिचय श्री जी के शिष्यों को हुआ और 10 वर्ष बाद श्री साहब के गुरु स्थान पर अग्निहोत्र प्रारभ हुआ। यह बड़ा आश्चर्यजनक पहलू है । गुरु पहले करता है और शिष्य उसे अनुसरण करता है पर अग्निहोत्र के मामले में उल्टा हुआ क्योंकि अग्निहोत्र का पुनरुज्जीवन यह श्री साहब जी के गुरु ने अपने लाडले शिष्य को पूर्णतः सौप दिया था बिना किसी मध्यस्त के । इस तरह अग्निहोत्र के पुनरुज्जीवन की शुरुआत हुईं और 1971 में एक सज्जन श्री वसंतराव परांजपे जी को श्री जी ने माधवजी के पास भिजवाया, श्री वसन्त जी ने अग्निहोत्र सीख और श्री जी की आज्ञा से इसे अमेरिका,पेरू और अनेक देशों में प्रसारित किया । आज विश्व भर में अलग अलग लोगों ने इसे फैलाया है आज हज़ारों लोगों को इसका श्रेय भी मिलता है पर जहां यह बात आती है कि अग्निहोत्र के पुनरुज्जीवन का बीड़ा किसने उठाया तो सर्वप्रथम माधवजी का नाम आता है । श्री जी यानी उनके गुरु ने उन्हें युगप्रवर्तक कहा है और हम अग्निहोत्र  आचरणकर्ता उन्हें विश्व गुरु कहते है इसलिए जहां जहां अग्निहोत्र का नाम आता है वहां वहां श्री माधवजी साहब नाम हमें लेना चाहिये यह हमारा फर्ज है कर्म है ।

ओम श्री साहब ।।

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