सद्गुरु मार्गदर्शन एवम माधवाश्रम
1 अक्टूबर हमारे साहब का जन्म दिन एवम 11 अक्टूबर उनका प्रतिज्ञा दिवस और इसलिए इन दिनों की स्म्रति में हमारे माधवाश्रम में अखंड महामृत्युंजय यज्ञ होता है।
11 ऑक्टोबर 1959 को साहब ने अपने सद्गुरु की चरण पादुकाओं पर जल छोड़ते हुये प्रतिज्ञा की थी कि मै वेदों का पुनर्जीवन कार्य निष्ठा के साथ करूँगा। इन वाक्यो को साहब ने 3 वार दौराया और फिर सम्पूर्ण जीवन इस प्रतिज्ञा पूर्ति में लगा दिया। और इस प्रतिज्ञा पूर्ति के लिए साहब ने अग्निहोत्र को अपनाया, अग्निहोत्र को अपना साधन बनाया, इसलिए अग्निहोत्र वज्रलेप है।
हमारे साहब केवल मार्गदर्शक ही नही, पथ प्रदर्शक ही नही बल्कि पुरोधा है। पुरोधा का अर्थ होता है, बो व्यक्ति जो स्वयं चल कर दिखाए, ऐसे युगप्रबर्तक, ऐसे क्रांतिकारी हमारे साहब विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही हमारे बीच मे आये है। साहब ने प्रचंड बैचारिक क्रांति को जन्म दिया एवम इस युग के लिए संदेश लेकर आये है कि" लोग रूढ़ि परम्पराओ से मुक्त होकर,सर्व शक्तिमान ईश्वर को माने, उसके आदेशो की पालना करते हुऐ अपने जीवन को सार्थक करे, यही साहब के प्रयासों का सार है। और इसलिए साहब ने सारी दुनिया को वेद अर्थार्थ धर्म पाठ दे दिया। इस धर्म पाठ को उन्होंने सारी दुनिया को समर्पित किया है" जन जन के दुख क्लेश
निबरणार्थ जनता को ही सादर भाव से समर्पित"। इस पुस्तक का कोई भी अध्याय किसी भी ग्रंथ का आधार नही है, यह तो अनुभव के आधार पर लिखी गयी है और साहब कहते हैकि यदि हम अनुभव ले सकते है तो आप भी ले सकते है।इस पुस्तक का महत्व उन्होंने इस वाक्य से दर्शाया है कि जो मनुष्य अपने आपको मनुष्य ही समझता है उसके लिये नितांत आवश्यक पुस्तक, इससे अधिक हमे कुछ नही कहना है। इसलिये हमे इसका गहन अध्ययन करना है, चिंतन करना है, मनन करना है, इसेआत्मसात करना है।
हमारे साहब तो अग्निपुत्र हैं। अग्निपुत्र का अर्थ होता है, बो व्यक्ति जो स्वच्छा से अपने जीवन के आहुति अग्नि में देते है और दूसरे के कल्याण के लिए
स्वयं एक धधकता हुआ अग्नि पुन्ज बन जाते है।
प्यार से, संम्मान से आदर भाव से हम पोतदार साहब को साहब नाम से संबोधित करते है। आदरणीय संचालिका जी
ने बताया कि बो व्यक्ति जिसका आध्यत्मिक क्षेत्र में अधिकार हो, सम्पन्यता हो, ईश्वरी ऐष्वर्य हो बही साहब होते है। कबीर
जी ने भी सद्गुरु के लिये साहब शब्द का प्रयोग किया है। साहब का अर्थ है समर्पण, निष्ठा, अनुशासन, समय की पाबंदी, तत्परता।
एक बार परम सद्गुरु ने साहब को कहा था कि हिमालय से भी अधिक ऊंचाई है, कार्य की नही तुमारी अपनी। संचालिका जी ने इसका अर्थ बताया कि साहब के संकल्प की इतनी अधिक शक्ति थी कि हिमालय की ऊँचाई भी उसके सामने छोटी लग रही थी और ऐसा व्यक्तित्व ही आकाश को गिलाफ चढ़ाने जैसा असंभव कार्य कर सकता था।
आदरणीय संचालिका जी का अपने जीवन का एक मात्र उद्देश्य ,अपने सद्गुरु को दुनिया मे उजागर करना, और इसके लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन ही इस कार्य मे लगा दिया। उन्होंने साहब नामक पुस्तक लिख कर साहब के सद्गुरु स्वरूप को दुनिया के सामने उजागर किया है कि हमारे साहब प्रत्यक्ष धर्म है, धर्मावतारी है, युग प्रबर्तक है और बो अपने लिए तो कहती है किबो तो हमारे हीरो है। संचालिका जी ने कहा कि अग्निहोत्र तो ईश्वरी कार्य है, ईश्वरी आदेश है, सुनियोजित है अतः समय पर होना ही है ,इसलिये उन्होंने 1 से लेकर 11 ऑक्टोबर के प्रोग्राम के दौरान सभी को मार्ग दर्शन
दिया कि हर प्रचारक का यह कर्तव्य है कि प्रचार
के दौरान बह
माधव आश्रम एवम अग्निहोत्र के प्रणेता हमारे साहब के बारे में निश्चित रूप से बताये अन्यथा उसका किया गया प्रचार अपूर्ण ही रहेगा।
इसलिए संचालिका जी के मार्गदर्शन एवम आदेशो के सख्ती से अनुपालना करते हुए प्रचार कार्य मे जुट जाना है
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